कीर जैन मुलत स्थानकवासी जैन समुदाय से संभधित है
जिनवाणी संसार रूपी समुद्र से पार उतारने वाली सुदृढ़ एवं सक्षम नाव है। संत उसके कुशल नाविक हैं। लेकिन भारत में अनेक ग्राम नगर ऐसे हैं जहाँ साधु- साध्वियों की सीमित संख्या होने के कारण उनका वहां पहुँच पाना कठिन होता है। ऐसी परिस्थिति में अनेक स्थानों पर हमारे जैन भाई -बहन वीतराग भगवंतो की अमृतमयी वाणी के श्रवण से वंचित रह जाते हैं। फलस्वरूप जैन सिद्धान्तों की बात तो दूर वहाँ के लोग सामान्य रूप से सामायिक सूत्र, प्रतिक्रमण सूत्र आदि की प्रारम्भिक जानकारी तक प्राप्त नहीं कर पाते।
सामायिक-स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक, अखण्ड बाल ब्रह्मचारी, अप्रमत्त साधक, परमपूज्य आचार्यप्रवर 1008 श्री हस्तीमल जी म.सा. ने दूरदर्शिता पूर्ण चिन्तन किया कि ऐसे क्षेत्रो के व्यक्तियों को वीतराग वाणी का लाभ बारह महीने नहीं तो कम से कम पयुर्षण पर्व के आठ दिनों में तो प्राप्त हो । चिन्तन मुखरित हुआ। परिणामस्वरूप साधु एवं श्रावक के मध्य एक ऐसा वर्ग तैयार करने की योजना बनी जो अपने ज्ञान-ध्यान को विकसित करने के साथ पर्युषण पर्व के दिनों में साधु- साध्वियों से वंचित क्षेत्रो में पहुँच कर धार्मिक आराधना सुचारू रूप से करवा सकें। तत्पश्चात विक्रम संवत् 2002 में पर्युषण पर्वाराधना हेतु स्वाध्यायी भेजने का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ|संवत् 2016 में आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म.सा. के जयपुर चातुर्मास में स्वाध्यायी प्रवृत्ति को सुदृढ़ रूप से संचालित करने के लिए ‘‘श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, जोधपुर की स्थापना की गई।